गंगा! तुम क्यों बढ़ती हो? – Latest Poem In Hindi 2019

हहर-हहर कर,
घहर-घहर कर,
उछल-उछल कर,
न जाने क्या कहती?

हम सब ने मिलकर,
किया प्रदूषित तुमको।
खर-पतवार!नाली-नाला का,
जल भी बहाया बढ़-चढ़कर।

पालीथीन! मल-मूत्र मिलाया,
कूड़ा कचडा को भी बहाया।
अमृत जैसा तेरे जल को भी,
न पीने योग्य! हमने बनाया।।

कारखाने का जहरीला पानी,
हे मां! तुझमें खूब घोल मिलाया।
इसी लिए हे भागीरथी! हे मैया,
तूने यह रौद्र रूप को अपनाया।।

तट -बंधो को काट-काट कर के,
गली-मुहल्ले को आज डुबाया।
पेड़ काटने के ही खातिर देखो,
घर!छत!आंगन पानी चढ़ आया।।

भागम भाग!मची शहर-गांव मे,
त्राहिमाम!मची गांव-शहरों में।
डूब रही झुग्गी-झोपड़ियां भी,
डूब रहे महल हैं दुमहले भी।।

कहीं खेतों में पानी भरा हुआ,
कहीं घरों में पानी घुसा हुआ।
कहीं बह रहीं हैं गौ -शालाएं,
कहीं बह रही हैं मधुशालाएं।।

कहीं टूट कर जर्जर घर गिरते,
कहीं धराशायी होते हैं दुमहले।
सिर पर लादे कोई गठरी भागा,
बढते पानी में कोई डूबा अभागा।।

गंगे!तेरा यह देख रौद्र रूप है,
चिंतित होते हैं!हम सभी हैं।
तेरे तट-बंधो को मिल बांधेंगे,
मां! तेरे घाटों को फिर संवारेंगे।।

रचयिता—- शैलेन्द्र कुमार मिश्र, प्रवक्ता हिंदी,
सेंट थॉमस इन्टर कॉलेज, शाहगंज, जौनपुर,यू पी.
सम्पर्क सूत्र–९४५१५२८७९६.